POEM

क्या कहें तेरी नज़र का तीर दिल के पार है


क्या कहें तेरी नज़र का तीर दिल के पार है

इश्क क़ी कश्ती क़ी तेरे हाथ में पतवार है|

 

तुमने होठों से कहा कुछ भी नहीं हमसे मगर

हमने समझा तुमको मेरे प्यार पर ऐतबार है|

 

मौजें दरिया के किनारों से सदा टकराती हैं

कौन जाने इसमें उनका प्यार है या रार है|

 

हमने इन तारों से अपना चाँद माँगा जब कभी

तो वे बोले क़ी उन्हें इनकार ही इनकार है|

 

हुश्न के बाज़ार में दिल बेचने आये हैं हम

और कीमत में मोहब्बत क़ी हमें दरकार है|

 

दिल में बसना है मेरे या दिल है मेरा तोड़ना 

पूंछने क़ी बात क्या है ये तेरा अधिकार है|

                                                               'नमन'