POEM

रात गहरी है राज गहरे हैं



रात गहरी है राज गहरे हैं
अब मोहब्बत पे लगे पहरे हैं। 
पहले यह रात गुनगुनाती थी 
अब मुंह बंद कान बहरे हैं। 
हम हलकान हैं अफवाहों से 
यहाँ पल-पल बदलते चेहरे हैं। 
कैसे उन पर भरोसा कर ले हम 
वो किसी तीसरे के मोहरे हैं। 
उम भर जिनका इंतज़ार किया 
वे किसी और दिल में ठहरे हैं। 
अब अवाम से किसको मतलब 
रहनुमा सारे अंधे बहरे हैं। 
हैं तिरंगे तुम्हारे हाथों मे 
तिरंगे मेरे दिल मे फहरे हैं। 
इन नौजवान आँखों मे देखो 
इनमे सपने कई सुनहरे हैं।