POEM

विंध गया था



विंध गया था 
श्रवण कुमार 
दशरथ के शब्द वेधी बाण से 
और फिर देखते ही देखते 
शब्द स्वयं ही 
बन गए हथियार
शब्दों से ही घायल किया था 
पांचाली ने 
दुर्योधन को 
अंधे का पुत्र अंधा कह कर 
उस एक शब्द शस्त्र  ने 
जान ले ली 
सहसत्रों वीरों -धनुर्धरों, महारथियों 
यहाँ तक कि
इच्छा मृत्यु का वर पानेवाले 
पितामह भीष्म की भी 


शब्दों के महारथी 
शब्दों को 
अपने तूणीर से निकालने के पहले
दस बार सोच
सोच उनकी संहारक क्षमता के बारे मे 
सोच उससे होने वाले विनाश के बारे में 
सोच उसकी शक्ति के बारे में 


यह शब्द 
कितना निष्पाप सा लगता है 
पर चीर देता है सीनों को 
चूर -चूर कर देता है सपनों को 
ध्वस्त कर देता है घरों को 


शब्द है 
वज्र से अधिक घातक
एक बार निकलने पर 
नहीं लौटता 
बिना प्रहार किए 


सोच-सोच-सोच 
यदि हो सके तो 
निकाल ऐसे शब्द 
जिनसे घिर आयें बादल 
बरसें घनघोर 
धरती हो जाए हरित 
नाच उठे मनमोर 
गीत गुनगुना 
राग छेड़
जीवन राग ।