POEM

नफ़रत की सियासत का इतना सा तमाशा है


नफ़रत की सियासत का इतना सा तमाशा है
हर शख़्स परेशान है हर दिल में हताशा है।

दुश्मन से लड़ सके वो उसमें नहीं है जिगरा 
वह शख़्स मगर अपनों के खून का प्यासा है।

मंदिर और मस्जिदों में लाखों का चढ़ावा है
सीढ़ी पर बैठे भूखों के हाथ में कासा है।

वो मुल्क की खिदमत में अंगुली नहीं हिलाता
हर रोज़ मगर देता वह झूठा दिलासा है।