निरीह
निष्प्राण
बेबस
असहाय ज़िंदा लाशे
झुकी हुई गर्दन
सिले होंठ
डबडबाई आँखें
अधिकार
कर्तव्य
संघर्ष
दायित्व आदि के
ज्ञान से परे
मानो
लकवा मार गया है सबको
तैयार हो चुकी है
तानाशाही के लिए ज़मीन
उग आई हैं
धार्मिक उन्माद के रथ पर सवार
हत्यारों की टोलियाँ
बचे हैं
कुछ अर्बन नक्सल
टुकड़े टुकड़े गैंग के कुछ लोग
आत्महत्या के लिए उतारू
कुछ पत्रकार
सत्य-अहिंसा
प्रेम और मानवता की
बात करने वाले
कुछ बेवकूफ़ नेता
पर ज़्यादा देर नहीं बचेंगे
ये सब
73 वें स्वतंत्रता दिवस की
पूर्व संध्या पर
प्रजातंत्र ले रहा है
अंतिम सांस
फिर भी
मैं प्रार्थना कर रहा हूँ
सबके
शुभ और मंगल की !
सिर्फ़ तुम्हारा
नमन