POEM

लाशों पर लाशें बिछाते जा रहे हो


लाशों पर लाशें बिछाते जा रहे हो

देश मुर्दाघर बनाते जा रहे हो.

 

बढ़ गयी है ‘व्यापम’ की व्याप्ति इतनी

नौजवानों को सुलाते जा  रहे हो.

 

मंत्रियों से संतरियों तक भ्रष्ट हैं सब

'मन की बातों' से हमें बहला रहे हो.

 

मर रहे हैं रोज सीमा पर जवान

तुम हो की सीना फुलाते जा रहे हो.

 

दिन दहाड़े लुट रही नारियां

राग तुम 'बेटी बचाओ' गा रहे हो.

 

आत्म हत्या कर रहे मजदूर-किसान

पीठ अंबानियों की तुम सहला रहे हो.

नमन